Tuesday, July 24, 2007

वीडियो चलचित्र नवाचा पाढा Table of nine -- A vedio film + kannad


नौ के पहाडे की लम्बी कहानी
अर्थात्
नवाच्या पाढ्याची गंमत जंमत
अर्थात्
अन्य भारतीय भाषाओं में भी
देखिए यह वीडियो
और समझिये कितना सरल है
जी हाँ गणित।


Table of Nine
---
नौ के पहाडेकी लम्बी कहानी हमने जो सीखी सुनो
जरा संभल के करना हिसाब प्यारों मिलेंगे नौ के नौ

नौ दुने अठारा, नौ दुने अठारा, एक और आठ हुए नौ
जरा संभल के करना हिसाब प्यारों मिलेंगे नौ के नौ
नौ तिया सताइस नौ तिया सताइस, दो और सात हुए नौ
जरा संभल के करना हिसाब प्यारों मिलेंगे नौ के नौ......
.............................................................
कितना बडी हो अंकोंकी गिनती अंकोंके जोड लगा लो
नौसे अगर भाग लगता हो प्यारों मिलेंगे नौ के नौ
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Saturday, May 26, 2007

संस्था, संकेत-स्थळे, माहिती-पत्रके, कार्यक्रम

संगणक - लेखन -- सुजय  लेले,  मुकुंद निकम,  वासंती वैद्य, अनिल गर्ग, शंकर बाबू, शंकर झा, अनंत कुलकर्णी, स्वप्निल कल्याणकर, प्रतिभा चौधरी, हरिभाऊ निरुतकर, माधव बसरकर, क्षेत्रपाल शर्मा, संजय पाटील, अनुराग, छाया थोरात, संजय बर्वे,

शिक्षण

बालसाहित्य -- देवपुत्र, स्नेह,  बालवाटिका,  लर्न  मोअर,  राजकिशोर सक्सेना, तितली सोसायटी फॉर चिल्ड्रन --बरेली,

साहित्य

कृषि - पशूसंवर्धन

विज्ञान

ग्राम-विकास

स्वास्थ्य

कायदा

सुप्रशासन

अर्थनीति

स्त्री -विमर्ष

अफलातून --
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संस्कृत

  1. पहिले जागतिक चित्पावन महासम्मेलन 23 डि 2007  www.chitpavans.in Anil Bhagwat 09326693266
समाज
  1. राष्ट्रीय मतदाता मंच  www.matadatamanch.org

प्रशासन

  1. मराठवाडा महसूल प्रबोधिनी औरंगाबाद
  2. TRTI, Tribal research and trg insti Pune

















Sunday, May 6, 2007

ये ये पावसा-- My First Book ...(Ye Ye Pawsa)..... (Marathi)

1st edition published 1996 by Shabdalaya Prakashan, Srirampur
2nd edition 2008 by Parchure Prakashan, Mumbai,
Ye Ye Pawsa (Marathi)

भीम आणि घटोत्कच
शेखचिल्लीची गाय
अंतरिक्ष यात्रा
खिचडी खिचडी
हरिणाची होडी
ढपोर शंख
नवाचा पाढा can be seen at http://uk.youtube.com/watch?v=LRq9F2DbiWo
ये ये पावसा
सापाचे स्वातंत्र्य
चंद्रसेनेचा राज्याभिषेक

A collection of Short Stories for children.
1st Edition published by Shabdalaya Prakashan, Shrirampur
2nd enlarged Edition is due shortly.

Ye Ye Pawsa ..............this first story is about the sea and the earth and Himalaya and the sun and wind and mountains, and how with the wise advice of Himalaya, they all manage to set up a system under which rains are brought to the earth.

Bheem and Ghatotkach .............the story of the mighty son and his mightier father, who is the son's hero. In a fight the son is defeated. He becomes anxious to know the secret of his father's superior strengh. He had followed every routine of his father to get that superior strengh. But he had missed something. What? Find out.

Sapache Swatantya............... There is a tiny snake fond of roaming. His mother allows him to go on a journey around the world. The snake is also fond of milk. Everyone, whom he approaches for milk wants to bind him in payment. The snake cherishes his freedom more than anything else, so he refuses. Finally he becomes friendly with a kid who asks only for his friendship in return of the milk. Can we learn something from them?

Shekhchilli chi Gay ................. Our hero Shekhchilli is a well meaning honest person, but a bit lazy and a lot talkative. Also, dreaming ! So once, while working in an orchard as a night watchman, he dreams that a cow from heaven has visited his garden and feasted there, and in turn, taken him around the garden of heaven. Shekhchilli is so carried away by the dream that he even offers his employer and villagers a trip to heaven's garden alongwith him. Imagine the fiasko that must ensue.

Navacha Padha .............. Have you noted the trick that can be played with the table of 9 ? All the numbers in the table follow a rule. The sum of all the digits is always 9. This song describes the trick. You can sing it in school, picnic, railway journey and in any Indian language, if you are a bit of poet.

Wednesday, April 18, 2007

एक था फेंगाड्या --- fengadya-Arun Gadre

उपन्यास को पढने के लिये
http://www.geocities.com/suvarna_panchhi/fengadya/F01.html से http://www.geocities.com/suvarna_panchhi/fengadya/F102.html तक. साथ में http://www.geocities.com/suvarna_panchhi/fengadya/F00.html भी जो setting को बताती है।

प्रस्तावना

-- डॉ. अरूण गद्रेके उपन्यासके भाषान्तर की--

हजारों वर्षों पहले जब आदिमानव गुफा रहता था, जब उसने केवल आग जलाना और झुण्ड में रहना सीखा था लेकिन गिनती, खेती, वस्त्र, चित्रकला, जख्मी का इलाज आदि से अभी कोसों दूर था, उस जमाने के मानव से आज के मानव तक का उन्ननय का इतिहास क्या है?
प्रसिद्ध मानववंश शास्त्रज्ञ डॉ मार्गरेट मीड अपने एक लेख में कहती हैं-"A healed femur is the first sign of human civilization"
डॉ मीड कहती हैं, उत्खननों में मानवों की कई हड्डियाँ मिली थीं, जो टूटी हुई थीं। ये वे लोग थे जिनकी हड्डियाँ जानवर के आक्रमण या अन्य दुर्घटना में टूटीं और इस प्रकार असहाय, रूद्धगति बना मनुष्य मौत का भक्ष्य हो गया। कई हड्डियाँ मिली जो अपने प्राकृतिक रूप में थी- अखण्डित। ये वे मनुष्य थे जो हड्डी टूटकर, लाचार होकर नही, वरन्‌ अन्य कारणों से मरे थे। लेकिन कई सौ उत्खननों में, कई हजार हड्डियों में कभी एक हड्डी ऐसी मिली, जो टूटकर फिर जुड़ी हुई थी। यह तभी संभव था जब लाचार बने उस आदमी को किसी दूसरे आदमी ने चार छः महीने सहारा दिया हो, खाना दिया हो, जिलाया हो। जब सबसे पहली बार ऐसा सहारा देने का विचार मनुष्य के मन में आया, वहाँ से मानवी संस्कृती की, करूणा की संस्कृति की, एक दूसरे की कदर करने की संस्कृती की शुरूआत हुई। जाँघ की टूटकर जुड़ी हुई हड्डी साक्षी है उस मनुष्य के अस्तित्व की जिसमें करूणा की धारा, और उसे निभाने की सक्षमता पहली बार फूटी।
डॉ. मीड के लेख को पढने के बाद पेशे से डॉक्टर श्री अरूण गद्रे को लगा कि यह एक बड़े ही मार्मिक संक्रमण काल का चिह्न है। कैसा रहा होगा वह मुनष्य, वह हीरो, जिसके ह्रदय में पहली बार यह दोस्ती और सहारे का झरना फूटा होगा।
डॉ. गद्रे ने इस विषय पर डॉ. पॉल ब्रॅण्डट् से चर्चा की। डॉ. ब्रॅण्डट् तीस वर्ष तक वेल्लोर के ख्रिश्चन मेडिकल कॉलेज में कुष्ठरोगियों के बीच रहे और उनके गले हुए हाथों पर सर्जरी की पद्धति विकसित करने के लिए प्रख्यात हैं। एक पत्र में ब्रॅण्डट् ने गद्रे को ऐसी ही दूसरी कहानी लिखी है- 'कोपेनहेगेन की एक म्यूजियम में छः सौ मानवी मंकाल जतन कर रखे गए हैं। ये सारे कंकाल उन कुष्ठरोगियों के हैं जिन्हें पाँच सौ वर्ष पूर्व एक निर्जन द्वीप पर मरने के लिए छोड़ दिया गया था। इन सभी कंकालों के पैर की हड्डियाँ रोग के कारण घिसी हुई हैं। लेकिन इनमें कुछ कंकाल अलग रखे गए हैं क्योंकि उनकी पाँव की हड्डियों पर बाद में भर जाने के चिहन स्पष्ट हैं। इसलिए कि कुछ मिशनरी उस द्वीप पर गए थे और जितना बन सका उन कुष्ठ रोगियों की सेवा की। इसी से कुछ रोगियों के पैर की घिसी हड्डियाँ भर गई। वे अलग रखे गए कंकाल साक्षी हैं उन मिशनरियों की सेवा के।
डॉ. ब्रॅण्डट् से विचार विनिमय के पश्चात डॉ. गद्रे ने जिन संदर्भ ग्रंथों को पठन और मनन किया वे थे- दि ऍसेन्ट ऑफ मॅन, कॅम्ब्रीज फील्ड गाइड टू प्रीहिस्टोरिक लाइफ, दि डॉन ऑफ ऍनिमल लाइफ, इमर्जन्स ऑफ मॅन, तथा गाइड टू फॉसिल मॅन।
इन सभी के मंथन और डॉ. गद्रे की अपनी साहित्यिक प्रतिभा से एक उपन्यास के चरित्र तैयार हुए वे थे फेंगाडया, बापजी और बाई के। उन्हीं से ताना बाना बुना गया टोलियों और बस्तीयों के बनने, उजड़ने और आगे बढ़ने का- मानवी संस्कृति के विकास का। वही उतरा है
मराठी उपन्यास 'एक होता फेंगाडया' में।
मराठी में यह उपन्यास १९९५ में प्रकाशित हुआ। उसी वर्ष इसकी बडी जीवट वाली वृद्ध प्रकाशिका श्रीमती देशमुख से मैं मिली थी। तब तक मैं सिद्धहस्त अनुवादक के रूप में प्रसिद्ध हो गई थी क्योंकि हिंदी तथा अन्य भारतीय भाषाओं से कई कहानियाँ मैंने मराठी में अनूदित की थीं और उसी कथा संग्रह का प्रकाशन देशमुख कंपनी करने वाली थी। चूँकि मेरी चुनी हुई कथाओं के कथानक नितान्त विभिन्न रंग-ढंग-इतिहास-भूगोल के थे, तो उसे मेरी रूचि जानकर मुझे यह पुस्तक पढने के लिये कहा। अगले तीन दिनों में ही मेरे दिमाग में यह इच्छा दर्ज हो गई कि इसका हिंदी अनुवाद करना है। ऐसी ही इच्छा अन्य पांच पुस्तकों के लिये है जिनपर मैंने अभी तक काम शुरू नही किया है। ज्ञानपीठ के श्री श्रोत्रिय से एक बार मैंने फेंगाडया की चर्चा की तो उनका आग्रह शुरू हो गया कि इसका अनुवाद जल्द से जल्द किया जाये।

फेंगाडया के कथानक में एक बडी कठिनाई यह है कि यह प्रागैतिहासिक काल से जुडी हुई रचना है। मैं नही जानती की हिंदी में रांगेच राघव जी के अलावा किसी ने इस प्रकार का प्रयास किया है। यह वह काल है जब मनुष्य ने खेती नही सीखी- वस्त्र पहनना नही सीखा- यहाँ तक कि पेड की छाल लपेटना भी नही। केवल बांस की खपच्च्िायों से बने कुटीर का उपयोग सीखा है। आग का उपयोग सीखा है। फिर भी कंदरा और गुफा पूरी तरह से नही छूटी है। भाषा विकसित नही हुई है। फिर भी मनुष्य विकसित हो रहा है- उसमें एक 'हिरोइक स्पिरिट' है। नया सीखने की ललक है। कलाकार की प्रतिभा है, दार्शनिक का तत्व-चिंतन है।

इसी लिये उपन्यास में एक हीरो या एक हीरोईन नही है- कई हैं। एक फेंगाडया है जिसमें शक्ति-सामर्थ्य है, दूरदृष्टि है, करूणा है और अपने विश्र्वास के प्रति अडिगता है। एक पंगुल्या है जो खोजी है- वैज्ञानिक है, गणितज्ञ है। एक पायडया है जो कथाकार है, कलाकार है और संगीतकार है। एक बाई है जो नेता है, दिशादर्शक है, अनुशासन और शासन करना जानती है। एक चांदवी है जो किशोर बयीन है और हर बार सवाल उठा सकती है- क्यों? एक कोमल है जो अपनी समझदारी से सबके लिये आधार बनकर डटी है।

और एक बापजी है- जो सत्ता के खेल को अच्छी तरह समझ सकता है, खेल सकता है और अपनी विध्वंसक आकांक्षा के लिये मकड जाल बुन सकता है। उस जाल को तोडकर- समाज को विकास के अगले सोपान पर ले जाने वाला उपन्यास है- फेंगाडया।

भाषा- भले ही उपन्यास का प्रकाशन इक्कीसवीं सदी का हो, लेकिन उसका घटनाकाल यदि दस पंद्रह हजार वर्ष पुराना है तो उसकी भाषा कैसी होगी? इसी लिये उपन्यास में जरूरत पडी कि इसका शब्द-भंडार सीमित रखा जाय, सरल रख्खा जाय- और फिर भी अभिव्यक्ति पूरी हो। हाँ, पठन को नादमय, और लयात्मक बनाने के लिये कुछ शब्दों को खास तौर पर रखा गया है जैसे ऋतुचक्र, मरण, मृतात्मा, सूर्यदेव।

भाषा- उस काल में व्यक्तियों का नाम देने का चलन तो था (बिना नामों में उपन्यास कैसे
बने?) लेकिन उसका तरीका क्या हो सकता है? तो सबसे सरल है कि व्यक्ति की देहयाष्टि के अनुरूप नाम दिया जाय। और मराठी में यह चलन भी है कि किसी नाम को आदरपत्र बनाना हो तो अन्त में 'बा' लगे और उसे मित्रता या छोटेपन के भाव से जोडना हो तो 'या' लगे। इसी लिये कथानक के पात्रों के नाम बने- फेंगाडया- जो पांवों को तिरछा फेंक कर चलता है, पंगुल्या- जो पंगु है। वाघोबा- अर्थात्‌ वाघ का भयकारी रूप।

आयुर्वेद की कई मान्यताओं का प्रयोग भी इस उपन्यास में बखूबी हुआ है। मसलन, महाराष्ट्र में अब भी माना जाता है कि कुछ बच्चे जिनके जन्म के समय पैर पहले बाहर निकलते हैं और सिर बाद में, उनमें कुछ विशेषता होती है। उन्हें पायडया कहा जाता है। ग्रामीण भागों में अब भी माना जाता है कि किसी औरत का बच्चा आसानी से पेट से न निकल रहा हो और कोई पायडया उसके पेट पर हल्की सी लात मारे तो बच्चे का जन्म तुरंत हो जाता है। सारे पायडया प्रायः कलाकार होते हैं। यह भी माना जाता है कि उन्हें जमीन के नीचे पानी होने का संकेत मिल जाता है- और धन के होने का भी। जाहिर है कि ये मान्यताएँ हजारों वर्षों में बनी हैं। लेखक ने इनका अच्छा उपयोग उपन्यास में किया है।

उपन्यास में सारे भाव, सारे रसों की सृष्टि आखिरकार शब्दों से ही होती है। और इस उपन्यास का शब्द भांडार है सीमित। इसी लिये कई ध्वन्यात्मक शब्दों को मैंने मराठी से ज्यों का त्यों लिया है- मराठी मूलतः एक कठिन स्वरोच्चारों की भाषा है जबकि हिंदी मृदु स्वरोच्चारों की भाषा है। मराठी का शब्द भांडार भी अधिक विस्तृत है। अतएव कुछ शब्दों का चयन मराठी से करना पडा। पहली बार उन्हें पढना थोडा अटपटा जरूर लगता है, लेकिन दूसरी तीसरी बार पढते पढते उनके अर्थ, उपयोगिता और सटीकता भी सामने आने लगते हैं। ये शब्द हिंदी में इतने आसानी से घुल मिल जाते हैं कि उनका अटपटापन समाप्त हो जाता है।

एक तो प्रागैतिहास कालीन उपन्यास- तिस पर एक खास ऍन्थ्रोपोलॉजिकल तथ्य को आधार बनाकर लिखा हुआ- फिर भी मुझे विश्र्वास है कि हिंदी के प्रबुद्ध पाठक इसका स्वागत करेंगे, क्योंकि किसी पाठक के मन में जिज्ञासा और नवीनता के लिये जो अकुलाहट होती है- यह उपन्यास उसका समाधान करता है।

॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥

Friday, April 6, 2007

Dr Gopalrao Modak A journey of dedication and sacrifice

checked on 16-08-2012 for the BOOK

Very often we are able to capture the sacrifices of our brave freedom-fighters when their life has been spent in jail or under duress of police action etc. But we rarely capture the sacrifices of those who dedicate themselves for bringing development and well-being in the society. The life-sketch of Dr Gopalrao Modak belongs to the second category.

Born on 15th September 1914 in the family of active freedom fighters, with his father and three uncles in the forefront of freedom struggle, Gopalrao Modak inherited a legacy, which called for commitment to the cause of the nation, sacrifice and concern for others. This was a period when the struggle for the independence was on and young Gopalrao Modak threw himself completely in national activism.

With a Diploma in Medicine and commitment to social service, Dr. Modak left Pune in 1938 to live in a tiny, sleepy village Khanapur in Haveli Taluka of Pune District. He had taken inspiration from Gandhiji and decided to devote his whole life for village development activities. He provided necessary leadership to the villagers and introduced the concept of “Gramswarajya” to change their lot. Dr. Modak, along with his wife, who was a trained midwife, extensively traveled to various neighbouring villages on foot and by cycle to attend to delivery cases and other health problems. He  was the only qualified doctor in the nearby 50 villages. In addition to health care concern, Dr. Modak undertook cleaning up of the villages and convinced the villagers about the importance of hygiene. He trained and involved the villagers in the social tasks he took up for their well-being.

Dr. Modak’s social work and achievements can be broadly divided into three distinct phases, from 1938 till independence, from 1947 till 1985 and from there till his demise in 2007(Verify)

In 
1938 he adopted Khanapur as his “Karambhumi” for social reforms. He was successful in his first  venture at inspiring the villagers for development in a spirit of self-help through “Shram–Dan”. As a result a road bridge was constructed in 1939 across a deep gorge that had kept the village divided into two parts.
In 1940, inspired by Gandhiji, he offered ‘Satyagraha’ and organized local farmers to extend moral support to the freedom struggle.
He motivated the villagers to once again resort to self-help to solve local problems and got a 4 k.m road constructed through ‘Shram-dam’ during 1941-45. He had to go on indefinite fast twice to achieve this goal.
In 1946, Dr. Modak conducted a 15-days camp with 75 participants to discuss the importance of rural development and organized regular educational camps, which later became a permanent feature in Khanapur for many years.

In 1947 we achieved independence. Now the phase of Satyagraha and taking up cudgels with foreign government was over. Now began the phase of constructive, developmental activities. Many more villages joined Dr. Modak’s movement to transform their life. With their increasing participation, he initiated and completed the construction of community hall and 100 ‘Sopa’ (saral in hindi) latrines, which were simple and utilitarian in design and easy to maintain. These were completed in 1947.
Dr. Modak invited people from different walks of life including thinkers, writers, social workers, government officials and politicians to visit his project sites and villages to interact with the local people. This resulted in broadening the  vision of the visitors and enrichment of the lives of the host villages.


Under his leadership and initiative, the first dispensary and maternity center were built at Khanapur, which benefited 150 villages of Mose valley and its hinterland. To nurture spirituality among the members of the local community a dilapidated temple was re-constructed in 1951. But he never taught villagers "praying without self-help". During the same period, a school with I -VII standard was also built in the area. The activity of village meetings, lectures and inviting dignitaries to have dialogue with rural masses continued.


Dr. Modak’s constant efforts in the field of education resulted in the construction of a high school and a junior technical and commercial college in 1965, consisting of 22 classrooms and other infrastructure. Under the banner of Sahyadri Vikas Mandal, he continued to get support of the villagers. 

1969 was the birth centenary of Mahatma Gandhi. The Govt. of Maharashtra organized a competition for the villagers on the issues of hygiene,  cleanliness and community development. Due to very large number of community development activities carried out by Dr. Modak, Khanapur won the first prize, in entire Maharashtra. This inspired citizens from many villages and with their participation, he undertook a major afforestation programme at Shirkoli in the Catchments area of Mutha &  Amba rivers, which supply water to Pune.

In 1970 the local government and Pune University organized a seminar in Khanapur. The governor of Maharashtra and the minister of education came to Khanapur. Among the invitees were some Christian missionaries who had been working in Pune for some years: father Deleury, a French national; father Lederley, a German, and Reverend McLord, an Englishman. They were all impressed with the devotion and work of Doctor Modak. “Your work is real missionary work” they said, and promised help.

In 1975 Fr. Deleury chose Khanapur to organize a workshop, which had 200 participants, including a number of Europeans, on the issue of rural development as the foundation of democracy.

With voluntary financial contribution from his friends in Europe, a secondary school, a rural hospital at Sonapur, a reservoir for irrigation purpose and 100 public toilets were built between 1974 and 1980, at Khanapur,  Vardade and neighboring villages. A second hospital was also built in 1980.

All this social work in the Khanapur and nearby village earned appreciations from many foreign Scholars, social workers and journalists and reports on his work have been published in many foreign newspapers. Dr. Modak was invited to visit European countries twice in the past. In 1977 Dr. Modak also submitted a number of community development projects for financial support from EMMAUS  and ICCO both organisations from Holland, but they remained to materialize. However, the effort told him that he could start such activities at  a smaller scale through the continuing support from villagers.


Dr. Modak was a man with modern vision and had directed his efforts to meet the needs and challenges of the 21st century. His approach for the upliftment of the life-quality of villagers was very practical. Starting from birth control, which he took up as early as in fifties,  he  completed many more projects such as water supply system, educational institutions, roads and health care. Responding to Dr. Modak’s crusade for environmental protection, the villagers collectively decided to stop felling of trees and grazing their cattle in the forest.

By mid-eighties, there came a paradigm shift in the life style of villagers. Pune was now a fast-growing mega-city and it was a big pull for the rural youth. The culture of quick money gains had its toll on the work of Sahyadri Vikas Mandal too. Concept of ShramDan and self-sustained villages was long lost. Dr. Modak was modern enough to shift his focus from large-scale  community development projects to smaller groups of deprived people. He, along with his trusted villager-friends, especially shri Appa Jawalkar and some more, took up activities like gurukuls, balwaris , old age homes, destitute women’s homes, bio-gas plants, solar energy projects, wormiculture farms, piped water supply facility and lift irrigation pilot projects etc and continued to work in those areas till end.

In nearly 70 years Dr. Modak accomplished all this at the grassroot level and empowered men and women of all communities through his modern approach. He was a great achiever and did not believe in publicity. He became a role model for three generations. Although he  never worked for awards but awards have been rightfully coming to him for  his tireless work. He was given Jamnalal Bajaj award for social service in the year 1986 and was also conferred an award by industrialist Navalmal Firodia in the year 2001 and was chosen for Swarup Sewa award.  In the year 2003, Dr. Modak was decorated with the Pune Ratna award. 


The best accolade for Dr. Modak’s work has come from the very villagers among whom he has worked untiringly for nearly seventy five years. Many of them donated the land for his cause, be it school building or tree plantation or campsite. The villagers participated in all activities proposed by him for their upliftment. Nearly three generations have stood behind him in his great social movement and in turn have not only benifited but have also learned a lot. He 
transformed the life of people in the entire region, and his deeds will keep motivating  present generation to realize its social responsibilities and work towards the cause of holistic rural development.

Looking at the great missionary zeal and achievements, Dr. Modak, who was popularly known as the barefoot doctor, in the field of social work, was also nominated for a national recognition of his selfless social service, namely ‘Padmashree award’ for the year 2004.
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A list of my english articles

I intend to upload my Eng articles published from time to time. But I need to search them out. So pl keep visiting this blog for new uploads. And here goes the list....

Dr Gopalrao Modak : A journey of dedication and sacrifice

Cycling as a National Sport
Energy auditing india
urban energy management

http://www.geocities.com/leenameh/article_list.html
Rishi-Krishi Sanskriti : A 3-tier Eco-friendly life-style with sustained societal progress
Administration and literature are not mutually exclusive

WOMEN ISSUES
1. The Integrated Rural Development Programme for Women in Developing countries:What more can be done? Published as a chapter in the book "Women Development & survival in the third world" Edited by Halesh Afshar Longman Publication U.K.(1989)
4.Eradicating the Devdasi Cult, - Vimal Patil Femina, Illustrated Weekly, RIPA-1990, Ref. my work with Devdasis
22.IMR and Sex differential trends in States in Infant Mortality
37.Sati, the real Legend : Pioneer
38. Women Empowerment Yojana, August 2001
38a. Empowerment of women kal_aaj_kal
39.Crime Profile of Maharashtra : Rape, Mainstream 16 Jun2001
40.Crime Profile of Maharashtra : Dowry Deaths Mainstream 22Sep2001
41. Crime situation in India: Mainstream 6Dec2001
42. In-laws, Outlaws, and Rule of Law : Mainstream 25Dec2001
43. Crime situation in Bihar : Rape. Mainstream 26Jan2002
44.Oh! to be born and educated: Mainstream July 2002 delhi_se2
45. NCW an Appraisal : Yojana Aug 2001
46. Crime situation in India: Yojana Feb 2002
47. Need for Speedier Criminal Procedure : CBI Bulletin, April 1999, Vol VII, No. 4
54.women in jails
55. REDEFINE SEXUAL ASSAULTS
Include in-laws in the definition of "family"
HEALTH
2.The Natural Way to Health -- IIC Journal 1991
20.Philosophy, Health, Agriculture, Economics : A new paradigm of development
11.Health Sector reforms-Satish Agnihotri, IAS
27.Stress Management for Junior IAS Officers
17.Book Review of "Colonising the Body: State Medicine and Epidemic Disease in Nineteenth-Century India by David Arnold." with Dr. Deodhar for American Journal of Public Health Sciences Also see in Hindi : शीतला माता का इलाज, तीनसौ वर्ष पूर्व 
Don't dub Ayurved as unscientific.

GOVERNANCE
3.Towards Liberalisation :issues and challenges before Administration IIPA-1996-Competion Entry
5.Trg. needs for Multilevel Planning :Lecture in ASCII - Hyderabad 1990
7.Anjaner -- call for a new model in tourism
8.Relooking at an Historical Irrigation system Yojana : 1999
9.How Sericulture developed in Karnatak C.S.B. Magazine 1986
15.Designing an urban Transport system for fuel saving
18.Holistic management of silk sector>Intemational Congress on Tropical sericulture
19.Sericulture & Rural Development
23.Role of EGS in Drought Hit Maharashtra -- Lokrajya
24.Creamy layers, Mandal, unemployment & Reservation
25.Consummerism Vs. Environment. A new economic model for 21st century
33.Payment of Subsistence Allowance: -- A case study in systemic changes for office efficiency.
34.My experience of computerization in the Govt
31.Ideal system of Government
53. goa-beyond_elections
48. An appeal: of a bureaucrat

EDUCATION
6.New Strategies for Education
6a..Much needed Reforms in Exam System
26.Role of Industries in Education
28.Salvaging examination system : an Urgent need
56. Need for reforming the system of examination
32.Why study Sanskrit
36.Revival of Sanskrit

IAS
12.Has IAS become-redundant--1996(Type-I)
13.Has IAS become redundant--1996(Type-II)
14.Implementing IRDP for Devadasi women :M.Sc.Thesis
57. The Career opportunity in IAS

LITERATUE
16.Holi Festival & Trees
21.Respecting the system
29.Two cheers for judiciary
30.On the sudden death of Shri Deepak Jog.
49. Encountering Count Dracula : Harmony April 2007

ENVIRONMENT
50. Oil grows on trees : Times of India, 1 july 2005
53.Alert for Oil conservation : LM interview in Woman's Era Nov 2004

SCIENCE
35.Risk factors in Mango Cultivation : A.V.Randive delhi_se1
10.Relevant Aero-modeling -Aditya Mehendale

STORY TELLING
51. Never postpone a good deed :Yudhishthir katha
52. Emperor Yudhishthir and Saint Mudgal


Friday, March 30, 2007

शीतला माता का इलाज, तीनसौ वर्ष पूर्व

मेरी पुस्तक शीतला माता
सन्‌ १८०२ में इंग्लंड के श्री जेनर ने चेचक के लिए वैक्सीनेशन खोजा। यह गाय पर आए चेचक के दानोंसे बनाया जाता। लेकिन इससे दो सौ वर्ष पहले से भारत में बच्चों पर आए चेचक के दानोंसे वैक्सीन बनाकर दूसरे बच्चों का बचाव करने की विधी थी। इस बाबत दसेक वर्ष पहले विस्तार से खोजबीन और लेखन किया है इंग्लंड के श्री आरनॉल्ड ने। उसी की यह संक्षिप्त प्रस्तुति है।
Colonizing the Body: State Medicine and Epidemic Disease in Nineteenth-Century India Authored by David Arnold. Reviewed by N. S. Deodhar and Leena Mehendale.
Journal of Public Health Policy Vol. 18: 372.
इसे आप यों पढ सकते हैं
http://www.geocities.com/sheetala_mata_18_centuary/index.html
यापृष्ठ 1 व 2
पृष्ठ 3 व 4
पृष्ठ 5 व 6
पृष्ठ 7 व 8
पृष्ठ 9 व 10
पृष्ठ 11 व 12
पृष्ठ 13 व 14
या eng. book review
http://www.geocities.com/sheetala_mata_18_centuary/review_text_eng.doc

Saturday, March 24, 2007

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The youtube id is sanstuti. pass = pahila-vahila
blog site for sanskrit ki duniya is edpcra while blogsite for JKR and Khindichya palikade is JKR

1_ye_ye_pawsa : marathi : collection of stories for children
2_son_denare_pakshi : marathi : bird watching
3_nity_leela : marathi : collection of stories translated from other indian languages
4_fir_varsha_aai: hindi: collection of stories for children
5_devdasi  : hindi : recounting my experiments in rehabilitation of 150 devdasis in sangli and kolhapur districts
6_gujara_bhatte ka kanoon : hindi : booklet
7_anandlok : hindi : 108 poems of Kusumagraj translated from marathi
8_sheetala_mata_18_centuary : hindi : looking at an indian system of vaccination for small pox prevelent in 17th and 18th century
9_hamaradosttoto Hamara Dost Toto : hindi : story of our loyal dog

10_suvarna_panchhi: hindi : bird watching तसेच संस्कृत की दुनियाँ बाबत सर्व फाइल्स



11_khindichya_palikade :
marathi : novel by Prasher, translated from English

12_fmr_literacy_india
12a_lokshahi_12
13_janta_ki_ray :hindi : articles in jansatta 1998 to 2002. To read them you may try alternative site http://www.geocities.com/janta_ki_ray/index.htm

14_ek_tha_fengadya
: hindi : novel by Gadre translated from marathi
15_man_na_jane_manko : hindi : collection of stories translated from other indian languages
16_chakori_baheril_prashasan_16 : marathi : articles on admn and society_lekh_1
17_aditya : Read his book Veej (marathi) or Bijlee (hindi) on electricity or visit his site http://www.geocities.com/adi001. Also see his book FAJITI (in noiri bhili -- the language of narmada tribals)
18_ek_shahar_mele_tyachi_goshta
19_DADA : see his books Patanjal Yogsootra, Sankhakarika, Yogtrayi and Buddhiyog_an_exposition_of_Bhagvadgeeta. Also get his Bhagvadgeeta recital on audio and video CDs.
see http://www.geocities.com/bsagnihotri
Also http://www.geocities.com/sanskrit_tv
Also www.KaushalamTrust.com
20_eng_articles
21_study of the patterns of crime against women : Indian scenario
22_hindi_lekh_2 --- hai koi vakeell
23_hindi_lekh_3
24_ithe_vicharana_vaav_ahe : marathi 2: articles on admn and society_
25_marathi_lekh_3
26_Yugandhara : hindi : edit of essays from a competetion for women on : women empowerment thru travelling
27_ Boond Boomd ki Bat : hindi : edit of infotainment stories on energy conservation in dramatic format, adapted from my radio serial.
28_ Marathi_katha_2 :
12??? Lokshahi : marathi : text book by Betham and Boyle, translated from English